एक सुजूनुशील कैरियरः संगीत कला....सुशिल शर्मा


Article by-सुशिल शर्मा शिक्षाविद


प्राचीनकाल से ही अद्वितीय प्रतिभाओं ने संगीत की कई विधाओं का सृजन किया है। नई-नई शैलियों,  धुनों एवं लयों को जन्म दिया गया। संगीत को प्रारंभ से ही एक साधना व तपस्या माना जाता रहा है। आज के भौतिक एवं उपभोक्तावादी युग में संगीत ने एक कैरियर का रूप ले लिया है। अगर शिक्षित एवं बेरोजगार युवक-युवतियों को संगीत के क्षेत्र में प्रोत्साहित किया जाय तो संगीत कला का तेजी से विकास भी होगा तथा यह क्षेत्र बहुआयामी एवं रोजगारोन्मुखी भी हो जाएगा।


संगीत वैसे तो एक प्राचीन कला है परन्तु आज की शिक्षा पद्धति के अन्तर्गत इसका महत्त्व अन्य किसी भी क्षेत्र से कम नहीं है। संगीत व गायन-वादन |एक प्रकार से सृजनशील कैरियर है। जो युवा गायन-वादन में रूचि रखते हैं तथा इस क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना चाहते हैं, उनके लिए तकनीकी कोर्स तथा बुनियादी कौशल हासिल करना अनिवार्य हो जाता है। आजकल फिल्म, रेडियो, दूरदर्शन तथा धारावाहिक के कलाकारों की चांदी है। संगीत के क्षेत्र में पैसा, शो. हरत, प्रतिष्ठा और मान-सम्मान भी है। जो लोग शास्त्रीय संगीत की परम्परा गायकी से जुड़े हैं, उन्हें भी देश के कोने-कोने तथा विदेशों से कार्यक्रम में भागीदारी के लिए मोटी रकम देकर आमंत्रित किया जाता है। उपभोक्तावादी संस्कृति विकसित होने के उपरान्त जैसे-जैसे मनोरंजन के साधनों का विकास हो रहा है, वैसे-वैसे यह क्षेत्र विकसित हो रहा है। सच्चाई यह है कि गायन-वादन से जहां पर्याप्त धन की प्राप्ति होती है, वहीं आत्मसंतुष्टि भी मिल सकतीहै। गायन के क्षेत्र में अगर लता मंगेशकर, आशा भोंसले, अनुराधा पौड़वाल, अलका याज्ञनिक आदि का बोलबाला रहा है तो इसके पीछे वर्षों के रियाज व नैसर्गिक प्रतिभा का ही हाथ है। तरन्नुम में डूबे सुर, सजे गीतों और वाद्ययंत्रों की खनखनाहट में रचे-बसे कर्णप्रिय संगीत से भला कौन नहीं अभिभूत हो उठता? कल्याणजी-आनन्दजी, नदीम-श्रवण, ल ६ म कान्त - य । र ल । ल , जतिन-ललित, आनन्द मिलिंद, अनन्त-परम, राम-लक्ष्मण, दिलीप सेन-समीर सेन जैसी अनेक विलक्षण प्रतिभाएं आज अपने कैरियर की ऊंचाईयों पर रही हैं। आजकल कई बहुचर्चित संस्थानों में गायन-वादन से संबंधित डिप्लोमा कोर्स शुरू हो चुके हैं। ये समस्त तकनीकी कोर्स रोजगारोन्मुखी हैं। प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद, (उत्तर-प्रदेश) से संगीत प्रभाकर एवं संगीत प्रवीण पाठ्यक्रम आमतौर पर छह से आठ वर्षों में पूरा होता है। अब अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में भी बी. ए. तथा एम. ए. की परीक्षा संगीत से दी जा सकती है। संगीत प्रभाकर, संगीत प्रवीण की तथा डिप्लोमा कोर्सी की पढ़ाई के लिए हर राज्य में संगीत महाविद्यालय हैं, जहां से संगीत का कोर्स करके रेडियो, दूरदर्शन, सिनेमा आदि में रोजगार पाया जा सकता है। संगीत से संबंधित विशेष जानकारियों को निम्नांकित पते पर पत्राचार करके जाना जा सकता है


1 परीक्षायोजक, प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद (उ.प्र.)


1 श्रीराम भारतीय कला केन्द्र कोपरनिकस मार्ग, मंडी हाउस, नई दिल्ली-110001


1 भातखण्डे हिन्दुस्तानी संगीत महाविद्यालय, लखनऊ (उ.प्र.)