Guru Nanak Jayanti: जब लालची आदमी ने नहीं पिलाया गुरु नानक को पानी, फिर हुआ था ये चमत्कार, पढ़ें ऐसी ही एक और कहानियां

दर्द-ए-दिल्ली 


कमल पवार संवाददाता .... 


हमारे देश में कार्तिक पूर्णिमा  को धूमधाम से मनाया जाता है, इसी दिन सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव का भी जन्म दिन मनाया जाता है. इसी दिन उनका जन्म हुआ था. सिख धर्म से जुड़े लाखों लोगों के लिए गुरु नानक जयंती  बड़ा पर्व है. इस दिन को प्रकाश पर्व के तौर पर भी मनाया जाता है. उनके दिखाए रास्ते पर आज भी लाखों लोग चल रहे हैं. गुरु नानक से जुड़ी कई कहानियां हैं जो बड़े लोगों ने सुनाई हैं और किताबों में पढ़ी हैं. उन कहानियों में खास बात हैं कि आखिर में कुछ सीखने को मिलता है. गुरु नानक जयंती के मौके पर हम आपको बताते हैं गुरु नानक देव जी की ऐसी कहानियां जो काफी प्रचलित हैं...



जब लालची आदमी ने नहीं पिलाया गुरु नानक देव जी को पानी
गुरु नानक देव जी अपने शिष्यों के साथ यात्रा किया करते थे. एक बार गांव के तरफ से गुजरते हुए उन्हें अचानक प्यास लगी. चलते-चलते उनको पहाड़ी पर एक कुंआ दिखाई दिया. गुरु नानक ने शिष्य को पानी लेने के लिए भेजा. लेकिन कुंए का मालिक लालची और धनी था. वो पानी के बदले धन लिया करता था. शिष्य उस लालची आदमी के पास तीन बार पानी मांगने गया और तीनों बार उसे भगा दिया गया. क्योंकि उसके पास धन नहीं था. भीषण गर्मी में गुरु नानक और शिष्य अभी तक प्यासे थे. गुरु जी ने कहा- 'ईश्वर हमारी मदद जरूर करेगा.'


 

जिसके बाद नानक जी ने मिट्टी खोदना शुरू कर दिया. थोड़ा ही खोदा था और अचानक वहां से शुद्ध पानी आने लगा. जिसके बाद गुरु जी और शिष्यों ने पानी पीकर प्यास बुझाई. गांव वाले भी देखकर वहां पानी पीने पहुंच गए. कुंए का मालिक देखकर गुस्सा गया. उसने कुंए की तरफ देखा तो वो हैरान रह गया. एक तरफ पानी की धारा बह रही थी तो दूसरी तरफ कुंए का पानी कम होता जा रहा था. जिसके बाद कुंए के मालिक ने गुरु जी को जोर से पत्थर मारा. लेकिन गुरु जी ने हाथ आगे किया और पत्थर हाथ से टकराकर वहीं रुक गया. ऐसा देख कुंए का मालिक उनके चरणों पर आकर गिर गया. गुरु जी ने समझाया- किस बात का घमंड? तुम्हारा कुछ नहीं है. खाली हाथ आए थे खाली हाथ जाओगे. कुछ करके जाओगे तो लोगों के दिलों में हमेशा जिंदा रहोगे.... 


गुरु नानक जी के आशीर्वाद का रहस्य
गुरु नानक देव जी अपने शिष्यों के साथ एक गांव पहुंचे. उस गांव के लोग बहुत ही बुरे थे. वो हर किसी के साथ दुर्व्यवहार किया करते थे. जैसे ही गुरु नानक पहुंचे तो गांव के लोगों ने उनके साथ बहुत दुर्व्यवहार किया और उनकी हंसी उड़ाने लगे. गुरु जी ने गांव वालों को दुर्व्यवहार ना करने के लिए समझाने की कोशिश की. लेकिन उन पर कोई असर नहीं हुआ. गुरु जी वहां से निकलने लगे. गांव वालों ने कहा- महात्मन, हमने आपकी इतनी सेवा की. जाने से पहले कम से कम आशीर्वाद तो देते जाईये. उन्हें आशीर्वाद देते हुए गुरु जी ने कहा- 'तुम सभी खूब आबाद रहो.'..

जिसके बाद गुरुजी दूसरी गांव पहुंचे. उस गांव के लोग बहुत ही अच्छे थे. गांव के लोगों ने गुरु जी की खूब सेवा की और भरपूर अतिथि-सत्कार किया. जब गुरु जी गांव को छोड़ने का वक्त आया तो गांव वालों ने भी आशीर्वाद मांगा. न्हें आशीर्वाद देते हुए गुरु जी ने कहा- 'तुम सब उजड़ जाओ.' इतना सुनकर उनके शिष्य हैरान रह गए. उन्होंने पूछा 'गुरु जी आज हम दो गावों में गए. दोनों जगह आपने अलग अलग आशीर्वाद दिए.लेकिन ये आशीर्वाद हमारे समझ में नहीं आए.' जिसके बाद गुरु जी ने कहा- एक बात हमेशा ध्यान रखो – सज्जन व्यक्ति जहाँ भी जाता है, वो अपने साथ सज्जनता और अच्छाई लेकर जाता है. वो जहां भी रहेगा, अपने चारों ओर प्रेम और सद्भाव का वातावरण बना कर रखेगा. अतः मैंने सज्जन लोगों से भरे गाँव के लोगों को उजड़ जाने को कहा.


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गुरु नानक देव जी की बचपन की कहानी
जब गुरु नानक देव जी छोटे थे. एक दिन वो चलते-चलते दूसरे मोहल्ले में चले गए. एक घर के बरामदे में महिला बैठी थी और जोर-जोर से रो रही थी. नानक बरामदे के अंदर चले गए और रोने की वजह पूछी. महिला की गोद में एक नवजात शिशु भी था. महिला ने रोते हुए उत्तर दिया- ये मेरा पुत्र है. मैं इसके नसीब पर रो रही हूं. कहीं और जन्म ले लेता तो कुछ दिन जिंदा जी लेता. इसने मेरे घर जन्म लिया और अब ये मर जाएगा.

नानक ने पूछा- आपको किसने कहा कि ये मर जाएगा? महिला ने कहा- 'इससे पहले जितने हुए कोई नहीं बचा.' नानक जी ने गोद में बच्चे को लिया. नानक बोले- इसे तो मर जाना है ना? महिला ने हा जवाब दिया. जिसके बाद नानक बोले- आप इस बच्चे को मेरे हवाले कर दो. महिला ने हामी भर दी. और नानक जी ने बच्चे का नाम मरदाना रखा. नानक बोले- 'अब से ये मेरा है. अभी मैं आपके हवाले करता हूं. इसकी जब जरूरत पड़ेगी, मैं इसे ले जाऊंगा.' नानक बाहर निकले और बच्चे की मृत्यु नहीं हुई. यहीं बालक आगे जाकर गुरु नानक जी का परम मित्र और शिष्य था. सारी उम्र उसने गुरु नानक की सेवा की.