दर्द-ए-दिल्ली
Written by :- साक्षी दुबे
आज के बदलते परिवेश में युवाओं का रिश्ता पुस्तकों से टूटकर सोशल मीडिया से जुड़ता जा रहा है।प्राचीन समय की बात कि जाए तो सभी पुस्तकों से कुछ इस प्रकार जुड़े होते थे की मानो पुस्तकों के माध्यम से ही वह जीवन के अनेक मूल्यों को सीखते चाहे वह किसी लेखक की आत्मकथा हो या कोई उपन्यास इन सभी पर चिंतन करने का समय अवश्य होता था परंतु परिवर्तन ही जीवन का नियम है इसी के अनरूप समय के साथ- साथ आज के दौर में युवा पीढ़ी पुस्तकों से दूरी बनती जा रही है।सोशल मीडिया का प्रयोग कर सभी डिजिटलीकरण के आदि हो चुके है फेसबुक ,ट्विटर ,व्हाट्सएप्प के कारण वह सदैव अपना अधिकतर समय इन सोशल साइटस पर बिताना ज्यादा पसंद करते है भारत के स्तर पर आकड़ो के मुताबिक हर महीने मोबाईल डाटा का इस्तेमाल करने वाले लगभग 240 करोड़ लोग है। तो वही फसबुक का इस्तेमाल करने वाले 207 करोड़ और व्हाट्सएप्प का प्रयोग करने वाले 20 करोड़ लगभग है।
दिल्ली में लोगो के लिए हर साल विश्वपुस्तक मेले के साथ-साथ कुछ दिनों बाद दिल्ली पुस्तक मेले का भी आयोजन किया जाता है। जिसमें बड़ी तादात में युवा वर्ग शामिल होते है परंतु वह इन पुस्तक मेलो में केवल घूमना पसंद करते है और सेल्फ़ी खींचकर अपने फोटो को अप्लोड कर यह बताते है की वह भी इस मेले का हिस्सा बने।
इस बार लोग विश्वपुस्तक मेले में पुस्तकें तो थी लेकिन आज के समय में डिजिटलीकरण लोगो पर हावी हो चूका है इसलिए सभी डिजीटल फॉर्म में पुस्तक पढ़ना ज्यादा पसन्द करते है क्योंकि अब वह पुस्तकों को उसके रूप में नही पढ़ना चाहते ।पुस्तके उनके लिए बोझ बनती जा रही है। आज के समय में राइटर्स बढ़ते जा रहे है और रीडर्स की तादात कम होती जा रही है इसका कारण है सोशल मीडिया की तरफ लोगो का आकर्षण । इस आकर्षण को कम करना जरुरी है तभी पुस्तको से उनका रिश्ता जुड़ा रहेगा और उन्हें अनेक विषयों की जानकारी मिल सकेगी।