सड़क हादसों से जा रही हैं जानें.....संदीप लाम्बा

Article by-संदीप लाम्बा



सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य का संज्ञान लेकर बिलकुल सही किया कि बीते वर्ष सड़कों पर गड्ढों के कारण साढे तीन  हजार से अधिक लोगों की मौतें हुई, क्योंकि राज्य सरकारें इसके प्रति तनिक भी चिंतित नहीं कि सड़कों के गड्ढे जानलेवा साबित हो रहे हैं। इसका प्रमाण इससे मिला कि केंद्र सरकार की ओर से जुटाए गए आंकड़ों को स्वीकार करने के बजाय राज्य सरकारों ने उनसे कन्नी काटने की कोशिश की। केंद्र सरकार द्वारा जुटाए गए आंकड़ों पर कुछ राज्यों ने तो यह तर्क दिया कि उनके परिवहन विभाग ने इन आंकड़ों का सत्यापन नहीं किया है। यह तर्क असत्य के सहारे जिम्मेदारी से बचने की कोशिश के अलावा और कुछ नहीं। एक आंकड़े के अनुसार 2017 में मार्ग दुर्घटनाओं में करीब डेढ़ लाख लोग मारे गए। यह हर दृष्टि से एक भयावह आंकड़ा है। इस आंकड़े को इसलिए गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि सड़क दुर्घटनाओं में अपेक्षाकृत युवा और अपने घर-परिवार के कमाऊ सदस्य मारे जाते हैं। जब ऐसे लोग असमय काल का शिकार बनते हैं, तब उनके परिवार के साथ समाज की भी क्षति होती है। 



यदि राज्य सरकारों की इस बात को सत्य मान लिया जाए कि सड़क हादसों वाले आंकड़ों का सत्यापन नहीं किया गया है, तो यह गैर जिम्मेदारी की पराकाष्ठा है। दुर्भाग्य से ऐसे ही गैर जिम्मेदाराना रवैय्ये का परिचय सड़कों का रख-रखाव करने में भी दिया जा रहा है और यही कारण है कि महज एक वर्ष में सड़कों पर गड्ढों की वजह से 3,597 लोग काल के गाल में समाज गए। इन मौतों के लिए राज्यों के लोग निर्माण विभाग और सड़कों का निर्माण करने वाले अन्य विभाग ही जिम्मेदार हैं। यह गंभीर चिंता का विषय बनना चाहिए कि सड़क दुर्घटनाओं का भयावह सिलसिला थम क्यों नहीं रहा है? राजमार्गों से अधिक सड़क हादसे भीतरी सड़कों पर होना तो यही बताता है कि अपेक्षाकृत धीमी रफ्तार वाला यातायात भी जानलेवा साबित हो रहा है। ऐसा इसीलिए हो रहा है। क्योंकि सुरक्षित आवागमन को लेकर न तो शासन-प्रशासन सजग है और न ही वाहनों का इस्तेमाल करने वाले। चूंकि जिम्मेदार लोग जवाबदेही से मुक्त हैं, इसलिए अपने देश में सड़कें कुछ ज्यादा ही बदहाल होती हैं। समझना कठिन है कि राज्य सरकारें सड़कों का निर्माण करने वाले विभागों को जवाबदेह बनाने के लिए क्यों तैयार नहीं हैं? हैरत नहीं कि इसका कारण यह हो कि केंद्र सरकार भी अपने लोक निर्माण विभाग को राजमार्गों की बदहाली के लिए पर्याप्त जवाबदेह नहीं बना पा रही है।