2018 की चुनौतियों का बोझ और 2019

2018 की चुनौतियों का बोझ और 2019


    एक बार सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री कौटिल्य (चाणक्य) से किसी ने पूछा कि सुख का मूल क्या है? उन का उत्तर था- धर्म। उस व्यक्ति ने फिर प्रश्न किया कि धर्म का मूल क्या है? चाणक्य का निभ्रान्त उत्तर था - 'अर्थ। निस्संदेह सामान्य व्यवहार से धर्म तक की सभी गतिविधियां धन (अर्थ) से प्रभावित होती हैं। कोई विद्यालय, देवालय, औषधालय, चिकित्सालय, पुस्तकालय, अनाथालय या कुछ सार्वजनिक हित का निर्माण करना चाहता है तो उसे अर्थ की आवश्यकता है। विपन्न से संपन्न तक सभी को धन चाहिए। लगातार बेहतर, और बेहतर सुविधाएं चाहिए। इसीलिए राजनीति से भी यही अपेक्षा की जाती है कि वह सामान्यजन के जीवन में अर्थ का प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए अधिकतम श्रम करें। अपनी नीतियों को लोकोन्मुख बनाये। सौभाग्य हमारे देश की राजनीति ऐसा करने के वादे भी करती है मगर दुर्भाग्य यह कि ऐसा करने के लिए उसके पास कोई रोडमैप नहीं है। सीमित संसाधनों के चलते एक तरफ प्रवाह बढ़ाते ही दूसरी तरफ नाली सूखने लगती है। जैसे नाक बंद करने पर मुंह खुल जाता है, उसी तरह बिना नियोजित ढंग से कार्य करने से इधर का गड्डा भरने के लिए 'उधर बड़ा गड्डा हो जाता है। आश्चर्य यह कि हम ‘भरे' गये गड्डे को तो बहुप्रचारित करते हैं पर 'खोदे गये गड्डे की अनदेखी करते हैं परिणाम यह हुआ कि वह विकराल रूप धारण कर हमारे सम्मुख खड़ा है। वर्ष 2018 में किसानों की कर्ज माफी राजनीति की फुटबाल बनी रही इसके लिए बुलंद आवाज में नारे लगाये वाले यह समझने को तैयार नहीं कि आज भी बहुसंख्यक भारतीय किसान सबसे पहले कर्ज चुकाने पर जोर देते है। खुद कष्ट सहकर भी जैसे-तैसे कर्ज चुकाने वाले किसानों की भावनाओं का सम्मान करने की बजाय हम कर्ज न चुकाने वालों की चिंता में डूब जाते हैं। यदि कुछ का कर्ज माफ होता है तो शेष के बच्चे उन्हें कोसते है कि उसने उन्हें दुखी रखकर भी कर्ज चुकाने पर जोर दिया। उन्होंने जैसा-तैसा खाया, फटा पुराना पहना, सादगी से जिये क्योंकि पिता सिद्धांतवादी कि सबसे पहले कर्ज चुकाओ। हमने अनेक बार यह मुद्दा उठाया। प्रधानमंत्री को भी पत्रा भेजाकि 'यदि कृषि फायदेमंद व्यवसाय नहीं है तो कर्ज माफी की बजाय सभी को भूमि की जोत के हिसाब से सहायता राशि, सब्सिडी मिलनी चाहिए। फिलहाल इससे उल्टा हो रहा है। यदि एक को भी उसके सिद्धांत, ईमानदारी की सजा मिलती है तो वह 'सामाजिक न्याय नहीं है।' यह सुखद है कि 2018 के जाते-जाते झारखंड का वह निर्णय आया कि जिसमें अगले वित्त वर्ष से 22. 76 लाख मध्यम और सीमांत किसानों को प्रति एकड़ 5,000 रुपये सहायता राशि दी जाएगी।