बदलते विकास की जनता के हाथ में डोर,इस बार कोई ओर ....

योगेश कुमार सोलंकी



यह भारत की राजनीति है। सभी को यहां मनमानी करने, मनमाने कदम उठाने और किसी से भी दोस्ती, यारी, गलबहियां या दुश्मनी करने की छूट है। लोकतांत्रिक परंपरा वाले विशाल देश होने के कारण यहां आये दिन चुनाव उपचुनाव होते रहते हैं। राजनीतिक चर्चाएं सरेआम सर्वत्र चलती रहती है। पढ़े -लिखे लोगों के अलावा अब अनपढ़ों का भी जमाना है। वैचारिक क्रांति का दौर है। लिहाजा सभी अपने लिए इधर-उधर मुकम्मल ठौ- ठिकाना तलाशते रहते हैं। यहां एक घर के चार कोनों में चार पार्टियों का झंडा लगे दिख जाए या एक ही घर के चार सदस्य चार विभिन्न पार्टियों की चर्चा करते दिख जाएँ तो ताज्जुब नहीं करना चाहिए। वर्तमान दौर में राजनीति सर्वेसर्वा, सर्वोच्च हैऔर सर्वाधिक पावरफुल हो गया है इसलिए लोग इसकी मनमाफिक छाया तलाशते मिल जाएंगे ताकि उनका भविष्य आगे इस राजनीति की छत्रछाया में सरल एवं सुगम हो जाए।


देश में कहने को सात राष्ट्रीय दल और अनेकानेक क्षेत्रीय एवं आंचलिक पार्टियां हैं। सबकी अपनी-अपनी रीति नीति और राजनी तिक महत्त्वकांक्षाएं हैं। इस समय इसके दो केंद्र बन गए हैं। इसमें से एक की भाजपा तो दूसरे की कांग्रेस पार्टी अगुवाई कर रही है। अलबत्ता दो धुरी के इर्द गिर्द विभिन्न पार्टियों की राजनीतिक लड़ाई चलती रहती है। देश की राजनीति के विभिन्न काल खण्डों में तीसरे मोर्चे की चर्चा का दौर चला। इससे जुड़ी कुछ पार्टियां कुछ कदम आगे चली और कई कदम पीछे भी हुई पर इस दिशा और इस सिलसिले में प्रयास को कभी कोई मुकम्मल मुकाम नहीं मिला। इसे किसी पड़ाव मिलने से पूर्व ही उस पर अल्पविराम क्या पूर्ण विराम लग गया। बहरहाल फिर एक बार इसी तीसरे मोर्चे की चर्चा चल रही है। यह देश में भाजपा कांग्रेस के अलावा तीसरी राजनीति धुरी एवं तीसरी ताकत बनने की फिराक में हैं। ममता बनर्जी, मायावती, अखिलेश यादव, नवीन पटनायक, के चंद्रशेखर राव आदि की मेल -मुलाकात एवं बैठक का सिल. सिला चल पड़ा है।


भाजपा कांग्रेस एवं नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी से इतर क्षेत्रीय दल चाहें तो इन दोनों पार्टियों और दोनों नेताओं से पृथक ताकतवर तीसरा मोर्चा खड़ा कर सकते हैं और चाहें तो सामने कुछ दिनों के भीतर सत्रहवीं लोकसभा के लिए आम चुनाव है जिसमें अपनी ताकत आजमा सकते हैं। तीसरे मोर्चे की बात चलाने वाले नवीन पटनायक, देवेगौड़ा, एम एम के स्टालिन से भी चर्चा कर चुके हैं। क्षेत्रीय दलों की कुंडली देखेंगे तो लगभग हर राज्य में क्षेत्रीय दलों की मौजूदगी है। तीसरे मोर्चे बाबत यदि ये एकजुट हो जाएंगे तो देश की राजनीतिक तस्वीर बदल जाएगी। क्षेत्रीय दल के रूप में उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा और रालोद आदि हैं। महाराष्ट्र में राकांपा, शिवसेना आदि हैं, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस हैं। बिहार में राजद, जदयू, लोजशपार्टी, जसपार्टी आदि है। तमिलनाडु में द्रमुक, अद्रमुक आदि है। आंध्रप्रदेश में तेलुगु देशम पार्टी है। तेलंगाना में टीआरएस पार्टी है। कर्नाटक में जदसे है। ओडिशा में बीजद है। छत्तीसगढ़ में जनता जोगी कांग्रेस है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी है। पंजाब में शिरोमणि अकालीदल है। झारखण्ड में झामुमो झाविपा है। हरियाणा में इनेलोद है। जम्मू कश्मीर में नेका, पीडीपी है। असम में अगप है I