गणतंत्र दिवस पर शब्दों के मेले में गूंजे गांधीजी के भजन..

जयपुर : गणतंत्र दिवस के अवसर पर जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन की शुरुआत गांधी भजनों के साथ हुई। संगीतज्ञ एवं लेखिका विद्या शाह ने फेस्टिवल के मार्निग म्यूजिक की श्रृंखला में श्रोताओं को आध्यात्मिक रंग से सराबोर कर दिया।



कन्नड़ संगीत में दक्ष विद्या शाह ने अपनी प्रस्तुति महात्मा गांधी की 150वीं जयंती को समर्पित करते हुए साबरमती आश्रम की प्रार्थना सभाओं में गाए जाने वाले गीत और भजन सुनाए। कार्यक्रम की शुरुआत उन्होंने कबीर के प्रसिद्ध भजन ‘मन लागो मेरा यार फकीरी में’ से की। इसके बाद उन्होनें गांधीजी को विशेष रूप से प्रिय एक निगरुण रचना ज्ञान की जड़िया दई, बुरा तो जिन्हें प्रस्तुत की। गांधीजी को भजनों के साथ ही ऐसे गीत भी प्रिय थे, जिनमें जीवन दर्शन झलकता था। विद्या ने ऐसी ही एक लोक रचना ‘है अवधू रण रण भागै, ङिारे ङिारे गगन मंडल घर मा’ भी पूरी तन्मयता के साथ सुनाई। गुजरात के भक्त कवि नरसी मेहता के भजन ‘वैष्णव जन तो तैने कहिये जे पीड़ पराई जानें रे’ उन्होंने उसी तरह प्रस्तुत किया जैसा यह आश्रम में गाया जाता था।



उन्होने मीरा की एक रचना ‘चल मन गंगा जमुना तीर’ भी गाई। कार्यक्रम का अंत उन्होनें गांधीजी के सबसे प्रिय भजन रघुपति राघव राजा राम से की, जिसमें उपस्थित संगीत रसिकों ने भी सुर मिलाकर शाह का साथ दिया।


उनके साथ गिटार पर सुमन दास, हारमोनियम पर शिवकुमार, तबले पर प्रकाश ठाकुर और ढोलक पर सतीश सोलंकी ने संगत की।