कब विकसित होगी उचित कार्यप्रणाली ?

अर्टिकल : संदीप लम्बा 



हममें से किसी ने किसी को कभी न कभी कोई न कोई काम के चक्कर में किसी न किसी सरकारी दफ्तर में जाना ही  पड़ता है। इस तरह से हम सभी वहां की बेहद धीमी और सुस्त कार्य प्रणाली से वाकिफ हैं लेकिन सवाल यह है कि यह सब कुछ इस तरह आखिर कब तक चलता रहेगा। मुझे बेहद अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि बैंक और पोस्ट ऑफिस के कर्मचारी वहां आए आगंतुकों को बिलकुल ही तवज्जो नहीं देते। यही हाल लगभग सभी अन्य सरकारी कार्यालयों का भी है। आज भी डाक भगवान भरोसे ही है। भेजी गई डाक सही समय पर सही जगह पर पहुंची भी या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है। इसके लिए वह विभाग कर्मचारियों की कमी का रोना रो रहा है। इंटरनेट और मोबाइल के आ जाने के बाद डाक विभाग में तीस फीसदी से अधिक कार्यभार की कमी आई है। इसी तरह बैंक के नियम कायदों में आए दिन बदलाव होते रहते हैं। बैंक कर्मचारी इसी बहाने ग्राहकों को भटकाते रहते हैं जिससे आम आदमी का कीमती समय बर्बाद होता है। पता नहीं क्यों एसबीआई और इंडियन बैंक किसी का भी खाता खोलने से पहले तमाम प्रकार के कागजात के लिए दसियों चक्कर लगवा देते हैं जबकि यही काम डाक विभाग में बहुत आसानी से हो जाता है। छठा वेतन आयोग लागू हो जाने के बाद सरकारी कर्मचारियों की वेतन वृद्धि इतनी अधिक हो गई है कि जिसकी कल्पना उन्होंने शायद ही इससे पहले कभी की होगी लेकिन तब भी उनका पेट नहीं भरा। आज सातवें वेतन आयोग की मांग की जा रही है जिसके लिए राष्ट्रव्यापी हड़ताल की तैयारी जोर-शोर से की जा रही है। विभिन्न सरकारी विभागों में किस तरह का काम-काज रोजाना होता है। यह भी सुन लीजिए। रक्षा विभाग के अंतर्गत लेखा कार्यालय में कार्यरत मेरे परिचित एक बाबू ने मुझे एक दिन बताया कि उन्होंने आज दिन भर में सिर्फ एक फोटो कापी निकाली जबकि उस दिन उनका वेतन करीब 1200 के आसपास बना। इसमें उस बाबू की कोई गलती भी नहीं थी। दरअसल उस दिन उनके पास कोई दूसरा काम ही नहीं था। वैसे आजकल ज्यादातर कर्मचारी जो कुछ हद तक ईमानदार हैं, यह मानते हैं कि सरकार उन्हें हद से ज्यादा वेतन दे रही है। वेतन तो वेतन, सरकारी कर्मचारियों को हर छः माह में दिया जाने वाला महंगाई भत्ता भी आज सवालों के घेरे में है। सवाल यह भी है कि क्या महंगाई केवल सरकारी कर्मचारियों के लिए ही है। जिस समय छठे और सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के लिए सुझाव मांगे जा रहे थे, उस समय कर्मचारी संगठनों की तरफ से यह तर्क दिया गया था कि उनका वेतन गैर सरकारी खासकर मल्टी नेशनल कम्पनियों के बराबर नहीं तो उसके समकक्ष तो होना ही चाहिए। इसलिए कहा गया था कि मल्टी नेशनल कंपनियों के आकर्षक पैकेज के कारण कई लोग सरकारी नौकरियां छोड़ रहे हैं या आना ही नहीं चाहते। सरकार ने भी बिना सोचे समझे इस तर्क को मान लिया, आज परिणाम सामने है। सरकारी कर्मचारियों को उनकी कार्यदक्षता से अधिक वेतन दिए जाने के बाद से ही महंगाई बेलगाम है। जमीन-जायदाद, सोना-चांदी के दाम आसमां छूने के पीछे छठे और सातवें आसमां छूने के पीछे छठे और सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू होना भी जिम्मेदार है।