क्या है लोहड़ी पर्व का इतिहास,महत्व और अर्थ जाने ..

Reported By : Kamal Pawar


नई फसल का उत्‍सव : पंजाब, हरियाणा व हिमाचल में मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर लोहड़ी का त्योहार नई फसल के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। पंजाबियों में नववधू और बच्चे की पहली लोहड़ी बहुत विशेष होती है। लोहड़ी की रात खुले स्थान में पवित्र अग्नि जलाते हैं और परिवार व आस-पड़ोस के लोग लोकगीत गाते हुए नए धान के लावे के साथ खील, मक्का, गुड़, रेवड़ी, मूंगफली आदि उस पवित्र अग्नि को अर्पित कर परिक्रमा करते हैं। लोहड़ी से कई दिन पहले ही बच्चे 'लोहड़ी' के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं। उसी से चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है। जिसके बाद आसपास के लोग उसके चारों ओर इकठ्ठा हो जाते हैं। घर और परिवार सहित इस अग्नि की परिक्रमा करते हैं। रेवड़ी और मक्के के भुने दाने इस अग्नि में अर्पित किए जाते हैं तथा ये ही चीजें प्रसाद के रूप में सभी को बांटी जाती हैं। घर लौटते समय 'लोहड़ी' में से दो चार दहकते कोयले, प्रसाद के रूप में, घर लाने की परंपरा भी है।  इनमें 'ल' का अर्थ है लकड़ी, 'ओह' का मतलब है गोहा यानी सूखे उपले, और 'ड़ी' होती है रेवड़ी जिनसे मिल बनता है लोहड़ी। लोहड़ी से कई कहानियां भी जुड़ी हैं। इनमें कुछ इस प्रकार हैं।



1- पौराणिक मान्यताओ के अनुसार लोहड़ी की परंपरा माता पार्वती की इस कथा से जुड़ी भी बताई जाती है। जब माता ने दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के रूप पिता के द्वारा किए अपमान से क्रोधित होकर खुद को योगाग्नि में दहन कर लिया उसके बाद ही परंपरा शुरू हुई । मान्यता है कि उसकी याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है। इस अवसर पर विवाहिता पुत्रियों को मायके से 'त्योहार' भेजा जाता है जिसमें कपड़े, मिठाई, रेवड़ी, फल आदि शामिल होते हैं। इस परंपरा में यज्ञ के समय अपने जामाता शिव का भाग न निकालने का दक्ष प्रजापति का प्रायश्चित्त इसमें दिखाई पड़ता है।


2- ऐसे ही लोहड़ी त्योहार के पीछे एक और लोक कथा का जुड़ा होना माना जाता है। इस कथा से दुल्ला भट्टी नाम के चरित्र का रोचक ऐतिहासिक कथानक जुड़ा है। कहा जाता है कि पुराने समय में सुंदर एवं मुंदर नाम की दो अनाथ लड़कियां थीं। उनके चाचा ने राज्य के शक्तिशाली सूबेदार का कृपापात्र बनने के लिए उन बच्चियों को उसको सौंप दिया। दुल्ला भट्टी नाम का एक नामी डाकू उसी राज्य में था, जो अमीरों व घूसखोरों से धन लूटकर गरीबों की मदद किया करता था। जब उसको यह बात पता चली तो उसने दोनों लड़कियों को मुक्त करा कर दो अच्छे लड़के देखकर खुद ही पिता के रूप में उन दोनों का कन्यादान किया। इसके लिए उसने आसपास से लकड़ी एकत्रित करके आग जलाई और फल मीठे की जगह रेवड़ी और  मक्के जैसी चीजों का ही इस्तेमाल किया गया। उसी समय से दुल्ला भट्टी की याद में यह त्योहार मनाया जाने लगा। ये नाम आज भी लोहड़ी के लोक गीतों में लिया जाता है और  वो पंजाब में नायक की तरह याद किया जाता है।



लोहड़ी के लोकगीत


लोहड़ी से कई दिन पहले ही इसके लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे किए जाते हैं। इसी सामग्री से चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है और इसकी परिक्रमा की जाती है। इस दौरान भी ये विशेष गीत गाये जाते हैं जो लोहड़ी से जुड़ी कथाओ पर आधारित होते हैं। इन गीतों में भी बेटियों के प्रति प्रेम की भावना छुपी है। ऐसे दो गीत इस प्रकार हैं I 


पहला गीत- "सुंदर मुंदरिये होय, तेरा कौन बेचारा होय। दुल्ला भट्टी वाला होय, दुल्ले धी बिआई होय। सेर शक्कर पाई होय, कुड़ी दे बोझे पाई होय, कुड़ी दा लाल हताका होय। कुड़ी दा सालु पाटा होय, सालू कौन समेटे होय।"


दूसरा गीत- "देह माई लोहड़ी, जीवे तेरी जोड़ी, तेरे कोठे ऊपर मोर, रब्ब पुत्तर देवे होर, साल नूं फेर आवां।"