राजधानी की हर सीट पर दिखेगा गरीब सवर्ण आरक्षण का असर...

Writtan by :- प्रिया शर्मा 



 


आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णो को आरक्षण देने का मुद्दा राजधानी की चुनावी सियासत को खासा प्रभावित करेगा। यहां 45 फीसद मतदाता सवर्ण जाति से संबंधित हैं और ये कमोबेश सभी लोकसभा सीटों का चुनाव परिणाम प्रभावित करने की हैसियत में हैं। यही कारण है कि नरेंद्र मोदी सरकार के गरीब सवर्णो को आरक्षण देने के फैसले से प्रदेश भाजपा गदगद है तो आम आदमी पार्टी (आप) व कांग्रेस इस फैसले को चुनावी स्टंट बताने के बावजूद इसका समर्थन कर रही हैं। मतलब साफ है प्रत्येक पार्टी सवर्णो के साथ खड़ा दिखना चाहती है ताकि लोकसभा चुनाव में उसे उनका वोट हासिल हो सके।



राजधानी में जहां उच्च शिक्षित वर्ग और बड़ी-बड़ी कोठियों में रहने वालों की अच्छी तादात है तो दिल्ली देहात, अनधिकृत कॉलोनी व झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों की भी बड़ी संख्या है। हर वर्ग व जाति के लोग यहां रहते हैं जिसे ध्यान में रखते हुए सभी पार्टियां संगठनात्मक जिम्मेदारी व चुनाव में टिकट देते समय जाति व क्षेत्र का भी ध्यान रखती हैं। ऐसे में आने वाले लोकसभा चुनाव में सवर्ण आरक्षण बड़ा मुद्दा होगा। दक्षिणी दिल्ली और चांदनी चौक छोड़कर सभी संसदीय सीटों पर सवर्ण मतदाताओं की संख्या 45 फीसद या इससे ज्यादा है। यहां के 225 गांवों में जाट समुदाय का दबदबा है, जबकि 70 गांवों में गुर्जरों का बोलबाला है। हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन व राजस्थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन से भी यहां की सियासत प्रभावित होती रही है। वहीं, अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले बिहार व उत्तर प्रदेश के सवर्ण जाति के लोग सरकारी नौकरी को सुरक्षित भविष्य का आधार मानते हैं।



दिल्ली में सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति के मतदाता उत्तर-पश्चिमी दिल्ली संसदीय क्षेत्र में रहते हैं, इसलिए इसे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किया गया है। यहां भी करीब 50 फीसद सवर्ण मतदाता हैं। चांदनी चौक संसदीय क्षेत्र में मुस्लिमों के साथ ही वैश्य, पंजाबीब्राह्मण तो नई दिल्ली में वैश्य, पंजाबीब्राह्मण निर्णायक स्थिति में हैं। उत्तर पूर्वी दिल्ली में वैश्य, ब्राह्मण व गुर्जर तो पूर्वी दिल्ली में वैश्य व ब्राह्मण के साथ पंजाबी चुनाव परिणाम को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। इसी तरह से दक्षिणी दिल्ली संसदीय क्षेत्र में ब्राह्मण व गुर्जर मतदाताओं की भी अच्छी संख्या है।