ठंड से ठिठुरता चांद अब सुकून से रजाई ओढ़ रात्रि में बड़े शान से चमकेगा..


(संदीप मिश्र)


ठंड से ठिठुरता चांद अब सुकून से रजाई ओढ़ रात्रि सेवा में बड़े शान इत्मीनान से चमकेगा । चांद की बड़ी हसरत थी की उसकी मां एक ऊँन का बड़ा झिंगोला सिलवा दे, पर चांद के हर दिन बढ़ते- घटते आकार से परेशान चाँद की माँ चाह कर भी ऐसा ना कर सकी। यह बात महान कवि रामधारी सिंह दिनकर ने बेहतरीन अंदाज में बयां की है। 


"हठ कर बैठा चांद एक दिन माता से यह बोला,


सिलवा दो मां मुझे 


ऊँन का मोटा एक झिंगोला,


सन सन चलती हवा रात भर जाडे से मैं मरता हूं ,


ठिठुर ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूं ।


जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि यह बात एक बार फिर सार्थक कर दिखाई है महान कवि रामधारी सिहं दिनकर ने। दिनकर की कलम से छलकी स्याही ने वर्षों पहले चांद के दर्द को सुरमई से कोरे कागज पर उतार उसके पीर को निखार दुनिया के आगे परोसा था। तब यह एक आस एक संभावना एक कोरी कल्पना की कसौटी मात्र थी, किंतु याद रखना चाहिए कल्पना ही आविष्कार का पहला सोपान होती है। दिनकर की इस कल्पना को चीनी वैज्ञानिक शाई गेंगशिन और उनके साथियों ने साकार कर इस स्वप्न को चांद की धरा पर सच साबित कर दिखाया है।


 


चांद संभावना है, चांद हसरत,इबादत, इश्क है। चांद की चांदनी का आकर्षण युगो युगो से धरतीवासियों को बरबस संमोहित करता ही रहा है। चांद पर कपास उग रही है, और जल्द ही चांद की रुई से बनी रजाई धरती पर आएगी। चांद तक मानव की सोच पहुंचने के बरसो बाद लाइका पहली जीवित चंद्र यात्री बनी और उसके बाद नील के कदम मील के पत्थर साबित हुए मानव के चाँद पर पड़े इस पहले कदम ने मानो चांद को  करीब बेहद करीब ला खडा कर दिया हो। उसके बाद हम सब को याद ही है कि भारतीय राकेश शर्मा ने चांद के दिल से पूरी दुनिया को बड़े गर्व से बताया  था " सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा"।


इस कथन के  बरसों बाद भारतीय वैज्ञानिकों ने पहला चंद्रयान चांद पर भेज वो कमाल कर दिखाया जो इससे पहले कभी कोई नही  कर सका था, चन्द्रयान ने अपनी पहली ही उड़ान में यह पहेली सुलझा दी की क्या चाँद पर जीवन संभव है। चांद की सतह पर पानी की बूंदे तलाश चन्द्रयान सदा सदा के लिए सुनहरे पन्नो में दर्ज हो गया। जहां भारतीय चन्द्रयान ने पानी खोजा तो वही दूसरी ओर खोज के प्यासे चीनियों ने चांद की चांदनी में कपास के अंकुर उंगा चांद की चुनौती को दुनिया के आगे और बडा कर खड़ा कर दिया। चांद की जमीन पर अंकुर मानवता की एक बहुत लंबी छलांग है, जो स्वप्न की कोरी गाथा से निकल अब हकीकत का आधार है ।


कल्पना का चांद, वैज्ञानिकों की खोज का चांद ,आशिकों का मासूक चाँद, धर्म की इबादत का चांद,  अब किसान का खेत बनने को बेताब नजर आ रहा है। चांद की जमीन पर यह कपास के अंकुर से उपजी संभावना चांद पर आहार को आकार देती प्रतीत हो रही है। कपास के बाद गेहूं ,बाजरा, धान ,मक्का ,आलू गोभी भी उगने लंगेगे  और जब आहार की प्रचुरता होगी तो विहार बन ही जायेगे, और फिर यह कल्पना भी कहां कल्पना मात्र रह जाएगी कि आओ तुम्हें चांद पर ले जाएं....


निःसन्देह चाँद भविष्य है, अब चांद अन्नदाता बनेगा काश चांद से आए गेहूं की रोटी धरती की भूख मिटा दे.... यह सुखद संभावना मन को उत्साहित कर रही है , इस पहले कपास के अंकुर ने मानव मन मे बहुत आश,विश्वाश, भर दिया है। चाँद क्या-क्या सौगात मानवता को अभी और देगा? कहना कहा संभव है, पर इतना तो कहा ही जा सकता है कि अब जल्द ही चांद पर भारत, रूस, चीन,अमेरिका, फ्रांस, जापान ,इंग्लैंड बस ही जाएगा बस दुआ करो चांद पर आदमियत के कदमों से कहीं उसकी शीतलता उसकी चांदनी न रौंदी जाए,उसके रूप, रंग, निखार, आकर्षण को मानव  बम, बारूद, गोलियां छलनी न कर दे। रजाई मुबारक मामा।