आप को सुप्रीम झटका, दिल्ली का असली बॉस केंद्र

reported by :- प्रिंस सोलंकी


नई दिल्ली: दिल्ली की आप सरकार और केंद्र सरकार के बीच चल रही अधिकारों की लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में गुरुवार को एक बार फिर केंद्र का पलड़ा भारी रहा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से साफ हो गया कि दिल्ली का असली बॉस केंद्र ही है। अधिकारों के दो बड़े विवादित मुद्दों में केंद्र सरकार को जीत मिली है। हालांकि तीन छोटे अधिकार दिल्ली सरकार की झोली में आए हैं। लेकिन टकराव का सबसे बड़ा मुद्दा ‘नौकरशाही पर नियंत्रण’ अभी भी अनसुलझा है। अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले के अधिकार पर दोनों न्यायाधीशों में मतभिन्नता है। ऐसे में फिलहाल वर्तमान व्यवस्था ही कायम रहेगी। केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों को स्पष्ट करने वाला यह फैसला न्यायमूर्ति एके सीकरी और अशोक भूषण की पीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की अपीलें निपटाते हुए सुनाया।



बड़ी पीठ करेगी नौकरशाही पर फैसला: दिल्ली में अधिकारियों पर नियंत्रण का मामला अभी फंसा रहेगा। क्योंकि दो सदस्यीय पीठ में मतभिन्नता के चलते यह मुद्दा विचार के लिए बड़ी पीठ को भेज दिया गया है। जस्टिस सीकरी ने फैसले में कहा कि ग्रेड-1 और ग्रेड-2 यानी संयुक्त सचिव और उसके ऊपर के अधिकारियों पर उपराज्यपाल का नियंत्रण होगा। हालांकि यूटी कैडर के दानिक्स और दापिक्स अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले की फाइलें मंत्रिपरिषद के जरिये उपराज्यपाल के पास जाएंगी। जस्टिस सीकरी ने मामले में और पारदर्शिता लाने के लिए ग्रेड-3 और ग्रेड-4 के अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले के लिए बोर्ड गठित करने को कहा, जैसा आइएएस अधिकारियों के लिए होता है। जबकि जस्टिस अशोक भूषण ने जस्टिस सीकरी से असहमति जताते हुए कहा कि सर्विसेज के मामले में संपूर्ण अधिकार केंद्र को है। दिल्ली सरकार को इस बारे में कोई अधिकार नहीं है।


केंद्रीय कर्मियों की जांच नहीं कर सकती एसीबी: दोनों न्यायाधीशों ने सहमति से दिए फैसले में कहा कि दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) केंद्र के नियंत्रण में है। एसीबी केंद्रीय कर्मियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच नहीं कर सकती। कोर्ट ने केंद्रीय कर्मियों को एसीबी के दायरे से बाहर करने की केंद्र सरकार की अधिसूचना को सही ठहराया।



दिल्ली सरकार को हैं ये अधिकार: सुप्रीम कोर्ट के फैसले में दिल्ली सरकार को भी कुछ महत्वपूर्ण अधिकार मिले हैं। इनमें दिल्ली सरकार का राजस्व विभाग इंडियन स्टाम्प एक्ट के तहत कृषि भूमि की न्यूनतम दर (सर्किल रेट) तय कर सकता है, लेकिन उस पर उपराज्यपाल की राय भी ली जाएगी। मतभिन्नता होने पर मामला केंद्र को भेजा जाएगा। कोर्ट ने कहा कि उपराज्यपाल और निर्वाचित सरकार को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए और मिलजुल कर काम करना चाहिए। किसी मामले में मतभिन्नता का मतलब हर मामले में मतभिन्नता नहीं है। इसके अलावा इलेक्टिकसिटी रिफॉर्म एक्ट में दिल्ली सरकार को बिजली बोर्ड का निदेशक नियुक्त करने और डीईआरसी को निर्देश देने का अधिकार है। दिल्ली सरकार मुकदमों की पैरवी के लिए विशेष लोक अभियोजक (स्पेशल पीपी) नियुक्त कर सकती है।


संविधान पीठ ने दिल्ली सरकार को दी थी प्राथमिकता: वैसे तो दिल्ली सरकार और केंद्र के संवैधानिक अधिकारों की व्याख्या पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ पिछले साल चार जुलाई को फैसला सुना चुकी है। उस फैसले में कोर्ट ने चुनी हुई सरकार को प्राथमिकता दी थी। कोर्ट ने कहा था कि उपराज्यपाल मंत्रिमंडल की सलाह से काम करेंगे। मतान्तर होने पर वह मामले को राष्ट्रपति को भेज सकते हैं, लेकिन उपराज्यपाल स्वयं स्वतंत्र रूप से कोई निर्णय नहीं ले सकते। उपराज्यपाल दिल्ली के प्रशासनिक मुखिया जरूर हैं लेकिन उनके अधिकार सीमित हैं।