मुस्लिम महिलाओ के मसिज्द में प्रवेश करने पर सुप्रीम कोर्ट जल्द करेगा फैसला

reported by ;- रेनुका राजपूत 


मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश और नमाज पढ़ने की अनुमति के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा। मंगलवार को कोर्ट ने पुणो निवासी दंपती की याचिका पर केंद्र सरकार, राष्ट्रीय महिला आयोग, ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड और सेंट्रल वक्फ काउंसिल को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है ..


जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने दंपती यास्मीन जुबेर अहमद पीरजादा और जुबेर अहमद नजीर अहमद पीरजादा की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि वे इस मामले में सिर्फ सबरीमाला के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की वजह से विचार करेंगे। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से कई सवाल किए और संतोषजनक उत्तर नहीं मिलने पर उन्होंने उपरोक्त टिप्पणी करते हुए मामले पर विचार के लिए नोटिस जारी किए।


 सबरीमाला फैसले को बनाया आधार : सुप्रीम कोर्ट ने गत वर्ष 28 सितंबर को 4-1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी के को असंवैधानिक ठहराया था। कोर्ट ने उस फैसले में पाबंदी को लिंग आधारित भेदभाव बताया था। मुस्लिम दंपति ने मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश और नमाज पढ़ने के अधिकार की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले को आधार बनाया है और मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश पर रोक को मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया है। साथ ही कहा है कि कुरान और हदीस में लिंग आधारित भेदभाव नहीं किया गया है



 


 क्या एनजीओ से कर सकते हैं मौलिक अधिकार हनन का दावा? : मंगलवार को सुनवाई के दौरान जब याचिकाकर्ता के वकील ने मौलिक अधिकार के हनन की दलील दी तो पीठ ने उनसे सवाल किया कि क्या मौलिक अधिकार के हनन का दावा किसी गैरसरकारी संस्था (एनजीओ) से किया जा सकता है। क्या मस्जिद, चर्च या मंदिर को स्टेट यानी राज्य माना जा सकता है। क्या एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के खिलाफ बराबरी के मौलिक अधिकार का दावा कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि हम इस बात से सहमत हैं कि राज्य को बराबरी का व्यवहार करना चाहिए, लेकिन किसी व्यक्ति पर यह कैसे लागू होगा। इस पर वकील की दलील थी कि भारत में मस्जिदों को राज्यों से लाभ और अनुदान मिलता है।


 क्या मक्का में महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश की इजाजत है? : जस्टिस बोबडे ने वकील से पूछा कि दुनिया में अन्य जगह क्या महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश की इजाजत है। क्या मक्का में वे जा सकती हैं। वकील ने कहा हां। इस पर पीठ के दूसरे न्यायाधीश जस्टिस एस. अब्दुल नजीर ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि मक्का में महिला पुरुष एक साथ एकत्र होते हैं। वकील ने कहा कि कनाडा में भी महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश की अनुमति है, लेकिन सऊदी अरब में इस पर फतबा है।


 किया सवाल, क्या मस्जिद में प्रवेश से रोका गया? : जस्टिस बोबडे ने पूछा कि क्या आपके मुवक्किल को प्रवेश से रोका गया। वकील ने कहा, ‘हां’। बल्कि उसने पुलिस से शिकायत की लेकिन पुलिस ने भी मदद नहीं की। इस पर पीठ ने कहा कि यह अपराध तो है नहीं तो पुलिस क्यों मदद करती। पीठ की ओर से कहा गया कि अगर आप किसी को अपने घर में नहीं घुसने देना चाहते तो क्या वह व्यक्ति पुलिस की मदद से घुस सकता है। इस पर वकील ने कहा कि मस्जिद का प्रबंधन करने वाला बोर्ड राज्य की तरह काम करता है उसे राज्य से अनुदान मिलता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट वकील के जवाबों से बहुत संतुष्ट नहीं हुआ, लेकिन अंत में कोर्ट ने मामले में विचार का मन बनाते हुए प्रतिपक्षियों को नोटिस जारी कर दिए।