ARTICAL by : पंडित कौशल पांडेय
सावन मास में कावड़ यात्रा : -
भगवान शिव का प्रिय सावन महीना लगते ही कावड़ यात्रा प्रारम्भ हो जाती है , इस दौरान कावड़ यात्री पैदल चल कर अपनी यात्रा पूर्ण करते हैं और हरिद्वार ,गंगोत्री, काशी , प्रयाग ,उज्जैन आदि से गंगाजल भरकर शिवालयों में शिवजी का अभिषेक करते हैं।
जानिए कांवड़ यात्रा के बारे में :-
कांवड़ यात्रा तीन तरह की होती है.
एक वो जो रुक-रुक कर चलते हैं. . दूसरे वो जो डंडी कांवड़ लेकर आते हैं यानी दंड-प्रणाम देते हुए पहुंचते हैं. . तीसरा और सबसे कठिन डाक कांवड़ ये बिना रुके बिना, खाए पिए दौड़कर या तेज चाल में चलकर आते हैं. कांवड़ यात्रा के दौरान एक साधु की जीवनशैली को साथ लिए चलना पड़ता है. काफी नियमों का पालन करना पड़ता है.
कांवड़ यात्रा के नियम विधि तथा महत्व :
श्रावण मास का शुभारम्भ होते ही भगवान भोले जो आशुतोष अर्थात शीघ्र प्रसन्न होने वाले हैं,को प्रसन्न करने का विधान प्रारम्भ हो जाता है।घरों में भी प्राय श्रद्धालु शिवालयों में जाकर सावन मास में भगवान शिव का जलाभिषेक,दुग्धाभिषेक,करते हैं। कोई सम्पूर्ण माह व्रत रखता है तो कोई सोमवार को व्रत रखता है, परन्तु सबसे महत्पूर्ण आयोजन है यात्राएँ जिनका गंतव्य शिव से सम्बन्धित देवालय होते हैं।
सम्पूर्ण भारत में भगवान् शिव का जलाभिषेक करने के लिए भक्त अपने कन्धों पर कांवड़ लिए हुए (कांवड़ में कंधे पर बांस तथा उसके दोनों छोरों पर गंगाजली रहती है) गोमुख (गंगोत्री) तथा अन्य समस्त स्थानों पर जहाँ भी पतित पावनी गंगा विराजमान हैं,से जल लेकर अपनी यात्रा के लिए निकल पड़ते हैं.
कांवड़ यात्रा वास्तव में एक संकल्प होती है, जो श्रद्धालु द्वारा लिया जाता है। कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ियों द्वारा नियमों का पालन सख्ती से किया जाता है। कांवड़ यात्रियों के लिए किसी भी प्रकार का नशा वर्जित रहता है। इस दौरान तामसी भोजन यानी मांस, मदिरा आदि का सेवन भी नहीं किया जाता।बिना स्नान किए कांवड़ यात्री कांवड़ को नहीं छूते।तेल, साबुन, कंघी करने व अन्य श्रृंगार सामग्री का उपयोग भी कावड़ यात्रा के दौरान नहीं किया जाता। स्त्री,पुरुष,बच्चे ,प्रौढ़ परस्पर एक दूसरे को भोला या भोली कहकर ही सम्बोधित करते हैं.कांवड़ ले जाने के पीछे अपना संकल्प है कुछ लोग “खडी कांवड़ ” का संकल्प लेकर चलते हैं,वो जमीन पर कांवड़ नहीं रखते पूरी यात्रा में.
कांवड़ यात्रा में बोल बम एवं जय शिव-शंकर घोष का उच्चारण करना तथा कांवड़ को सिर के ऊपर से लेने तथा जहां कांवड़ रखी हो उसके आगे बगैर कांवड़ के नहीं जाने के नियम पालनीय होती है। पैरों में पड़े छाले,सूजे हुए पैर,केसरिया बाने में सजे कांवड़ियों का अनवरत प्रवाह चलता ही रहता है अहर्निश ! स्थान -स्थान पर कांवड़ सेवा शिविर आयोजित किये जाते हैं,जिनमें निशुल्क भोजन,जल,चिकित्सा सेवा,स्नान विश्राम आदि की व्यवस्था रहती है।मार्ग स्थित स्कूलों,धर्मशालाओं ,मंदिरों में विश्राम करते हुए ये कांवड़ धारी ,रास्ते में स्थित शिवमंदिरों में पूजार्चना करते हुए नाचते गाते है। बम बम बोले बम भोले की गुंजार के साथ शिवरात्री (श्रावण कृष्णपक्ष त्रयोदशी +चतुर्दशी) को जलाभिषेक करते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस माह में सभी देवता सो जाते हैं और केवल शिव ही जाग्रत रहकर अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। तो ऐसे में भक्त भी शिवजी को प्रसन्न करने में कोई कसर नहीं छोड़ते और इसलिए लम्बी यात्रा कर के उनका जल अभिषेक करते हैं।
किसने शुरू की कावड़ यात्रा ? :-
कावड़ यात्रा :- यह प्रथा भगवान् परशुराम ने शुरू की थी। उन्होंने यह परम्परा अपने आराध्य देव भगवान् शिव के लिए शुरू की थी, और तभी से यह परम्परा पूरे विश्व भर में प्रचलित है। पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय समुद्र से निकले हलाहल को शिवजी ने अपने कंठ में धारण कर लिया और नीलकंठ कहलाये। किन्तु हलाहल के दुष्प्रभाव से उन के शरीर की ऊष्मा बढ़ने लगी, शिव की ऊष्मा को शांत करने के लिए देवताओं ने उनके ऊपर गंगा से जलाभिषेक किया जिससे उन्हें शीतलता प्राप्त हुई। कहते हैं तभी से शिवजी पर जलाभिषेक करने की परंपरा प्रारम्भ हो गयी।
विशेष :- कांवर यात्रा के समय कभी भी किसी प्रकार का नशा नहीं करना चाहिए , दिखावे से दूर रहे , भगवान शिव भोले भंडारी है उन्हें दिखावा पसंद नहीं है अतः कँवर यात्रा में ध्यान रखे किसी भी प्रकार का दिखावा न करे किसी से द्वेष भावना न रखे।
कई लोग कांवर यात्रा के समय झुण्ड में हुरदंग भी करते है जो गलत है , अतः सनातन धर्म की गरिमा को बनाये रखे।
आप सभी की कांवर यात्रा सुखद और मंगलमय हो ऐसी कामना करता हूँ
हर हर महादेव