मौत से पहले मन की बात बोल गई खुली आंखों का सपना, पूरा कर सुषमा आंखें मूंद गई

संदीप मिश्रा,


मौत की आहट मन के पटल पर दस्तक  दे रही होगी, धड़कने मंद हो अनंत की राह पर चलने की चाह बता रही होंगी, तब भी सुषमा स्वराज की सांसों की सरगम में सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा गूंज रहा होगा.....यह महज एक कयास ही नहीं ससबूत सुषमा अपने आखिरी संदेश के साथ देश और दुनिया के नाम कर गुमनाम राह की राही बन आंसुओ के समंदर में चाहने वालों को छोड़ने से पहले बता किसी और जहा की वासी हो गई। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर भारत के संसद भवन में जब मेजे थपथपा सांसद कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक देश एक विधान का जश्न मना रहे थे तभी मौत से मानो मोहलत मांग सुषमा ने अंतिम विदाई से पहले अंतिम संदेश लिख इतिहास के पन्नों में खुद को सदा सदा के लिए अमर कर लिया। उन्होंने लिखा"प्रधानमंत्री जी आपका हार्दिक अभिनंदन ने अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी ।" पूरा जीवन जिस सपने को सुषमा स्वराज ने अपनी खुली आंखों मे सजाए रखा उसके साकार होते ही वो निराकार में विलीन हो गई,राजनीति की वो आवाज जिस की खनक सदैव करोड़ो करोड़ो चाहने वालो को हर्षित, उत्साहित, आनंदित करती रहेगी। 



महज 67 साल के जीवन सफर में 42 साल राजनीति की कायाकल्प करने का संकल्प ले स्वराज ने गुजार दिया। इंसानियत, मासूमियत, प्यार से ओतप्रोत सादगी, शालीनता की प्रतिमूर्ति सुषमा जी का जन्म 14 फरवरी को हरियाणा के अंबाला शहर में हुआ हरियाणा की गौरव और अंबाला की लाडो ने हर बढ़ते कदम के साथ नई तदवीर, नई तस्वीर, नई तकदीर की तस्दीक जीवन के आखिरी लमहे तक करती रही। 



     अखिल भारतीय छात्र संघ से छात्र राजनीति में शुमार हो 1973 में मात्र 23 साल की उम्र में देश के सर्वोच्च न्यायालय में बतौर वकील बन कैरियर की शुरुआत कर मिसाल पेश की, 1975 में स्वराज कौशल के साथ विवाह बंधन में बंध जिन्दगी को जिंदगी के मायने दिए। और उसके दो वर्ष बाद ही 1977 में हरियाणा के सबसे कम उम्र के मंत्री बन नया इतिहास रचा सुषमा जी ने तब तक  जीवन के बस 25 बसंत ही देखे  थे,1977 से 82 और फिर 1987 से 1909 में आप दो बार हरियाणा मे विधायक चुनी गई, 1998 में दिल्ली विधानसभा का चुनाव जीत देश के दिल दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने का सम्मान भी आपने अपने नाम दर्ज़ किया,इसके बाद राष्ट्रीय राजनीति में जब पहली बार कमल खिला और महान अटल ने देश की कमान संभाली तो सुषमा स्वराज जी ने 1996 में मंत्री मंडल मे मंत्री पद की शपथ ले सूचना प्रसारण मंत्रालय संभाला। सात बार संसद मे चुनकर पहुचने वाली लोकसभा की सबसे लोकप्रिय स्वर मे से एक स्वाराज ने सक्रिय राजनीति से स्वयं को स्वयं ही यह कह कर 2019 मे दूर कर लिया की अब अगला चुनाव नही लडेंगी। रजनीतिक विदाई से पहले अब तक सुषमा राजनीति आकाश मे सूरज बन अमिट हो चुकी थी। 2009 में सर्वसम्मति से वह विपक्ष की नेता चुनी गई, फिर 2014 जब कमल लहर सुनामी बन राष्ट्र पटल पर अटल की जगह मोदी युग का आगाज़ हुआ तो मोदी सरकार मे इंदिरा गांधी के बाद देश की दूसरी महिला विदेश मंत्री बन सुषमा ने लोकप्रियता का दायरा देश से बढ़ाकर दुनिया के कोने कोने में अनोखे अंदाज़ मे स्थापित किया।  बेजुबान गीता की पाकिस्तान से वतन वापसी की भावनात्मक कहानी हम  सबको जुबानी याद ही है। सहायता की महारता ऐसी की न चिट्ठी, न पत्र, न कोई औपचारिकता ट्विटर के संदेश को ही मदद का हथियार बना, सेवा सहयोग, सहायता करने की महानता को साबित कर देश और दुनिया को यह सिखाया की दिल मे सेवा की चाह होनी चाहिये राह खुद ही बन जाती है। सेवा को सदैव तत्पर सादगी से भरपूर संयम साधना का स्वरूप स्वराज ने जब संयुक्त राष्ट्र में हिंदी के मान सम्मान को अपने संवाद से बढ़ाया तो देशवासी गर्व से झूम उठे। 



        नये नये शब्दों की रचयिता, संवाद की देवी, संयम की मूर्ति,साहस का निशान बन सुषमा ने बेदाग सादगी भरा जीवन जिया और जब वक्त विदाई का आया और बेरहम मौत चौखट पर खड़ी हुई उस वक़्त भी मानो उनका दिल में  कश्मीर मे फहराते तिरंगे की तस्वीर झांक रही थी देश के लिए ही धड़कने देश प्रेम मे ओत प्रोत धड़क रही थी, हिंदुस्तान से प्यार नसों में उबाल भर रहा था, कश्मीर से कन्याकुमारी तक शान से लहराते तिरंगे के साकार स्वरूप से उनकी सांसे महक रही थी 


,जीवन भर जिस सपने को अपनी खुली आंखों में सजा स्वराज ने राजनीति की कठिन राह को चुना उस धारा 370 को ख़तम होते उस स्वप्न का साकार स्वरूप  देख स्वराज ने अपने आखिरी समय अपने आखिरी पैगाम देश के नाम लिख एक एक साँस देश के सम्मान के नाम निसार कर दुनिया को अलविदा कह मौत से पहले मन की बात बोल गई, खुली आंखों का सपना पूरा कर सुषमा आंखें मूद गई।