ख्वाहिश नहीं मुझे मशहूर होने की,
आप मुझे पहचानते हो इतना ही काफी है l
अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे,
जरूरत थी उसने उतना ही पहचाना मुझे ।l
जिन्दगी का फलसफा कितना अजीब है,
शामें कटती नहीं साल गुजरते चले जा रहे हैl
ये जिन्दगी अजीब सी दौड है जीतो तो अपने पीछे छूट जाते हैं
और हार जाओ तो अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं l।
बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर,
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है।
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीका,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना।।
ऐसा नहीं की मुझमें कोई ऐब नहीं है,
पर सच कहता हूँ मुझमें कोई फरेब नहीं है l
जल जाते हैं मेरे अंदाज से मेरे दुश्मन,
क्योंकि मैंने न मोहब्बत बदली न दोस्त ।l
एक घड़ी खरीदकर हाथ में क्या बांध ली,
वक्त पीछे ही पड़ गया मेरे l
सोचा था घर बनाकर बैठुंगा सुकून से,
घर की जरूरतों ने मुसाफिर बना डाला मुझे।।
सुकून की बात मत कर ऐ गालिब,
बचपन वाला इतवार अब नहीं आता l
जीवन की भाग दौड में रंगत खो जाती है,
हँसती-खेलती जिन्दगी आम हो जाती है ।।
एक सवेरा था जब हँसकर उठते थे हम,
अब बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है l
दूर निकल गए रिश्तों को निभाते निभाते,
खुद को खो दिया हमने अपनों को पाते पाते.
लोग कहते हैं हम मुस्कुराते बहुत है,
और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते l
खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,
लापरवाह हूँ सब की परवाह करता हूँ l
मालूम है कोई मोल नहीं है मेरा फिर भी,
कुछ अनमोल लोगों से रिश्ता रखता हूँ l