मंडावली थानाध्यक्ष प्रशान्त नीमा का सराहनीय कदम

पूर्वी दिल्लीः थाना मंडावली थानाध्यक्ष प्रशान्त कुमार नीमा जहां भी जिस भी थाने में नियुक्त रहते है, वहां अपने थाना क्षेत्र की जनता के साथ भरपूर तालमेल रखते है। इलाके की जनता को एहसास नही होता कि कोई पुलिस अधिकारी उनके इलाके में है, घर की तरह माहौल थाने में देखने को मिलता है, इसका फायदा जहां पुलिस विभाग को मिलता है वहीं इलाके की जनता को भी शान्तप्रिय और शकुन का जीवन व्यतीत करने का एहसास होता है। वैसे भी दिल्ली पुलिस कमीश्नर अमूल्य पटनायक का हर पुलिस अधिकारी और जवान को यही संदेश होता कि ज्यादा से ज्यादा पुलिस जनता को साथ ताल-मेल करके अपने इलाके को अपराधमुक्त रखे।



           इस संदेश की गरिमा को थानाध्यक्ष प्रशान्त नीमा बखूबी से निभा रहे है। इसका ताजा उदाहरण अपने थाना क्षेत्र के दिल्ली कॉन्वेट स्कूल के 50 बच्चों को अपनी तरफ से नेशनल पुलिस मेमोरियल का भम्रण के रुप में मिला है। दरअसल नेशनल पुलिस मेमोरियल  एक ऐसा स्थल है जहां पर आजादी के बाद से अब तक हमारी-आपकी सुरक्षा करते हुए केंद्र और राज्य के पुलिस के जितने भी जवान शहीद हुए हैं। उन सभी जवानों ने कश्मीर, पंजाब, असम, नगालैंड, मणिपुर और मिजोरम जैसे क्षेत्रों के अलावा नक्सलवाद और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में शहादत दी है। इन शहीदों की शहादत को सम्मान देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 अक्टूबर को राजधानी दिल्ली में नेशनल पुलिस मेमोरियल का उद्धाटन किया था।  21 अक्टूबर को राष्ट्रीय पुलिस दिवस मनाया जाता है, इसलिए शहीदों  के सम्मान के लिए इस दिन को चुना गया था।



     आपको बता दें कि यह देश की राजधानी दिल्ली के चाणक्यपुरी में शांतिपथ के उत्तरी छोर पर 6.12 एकड़ जमीन पर केंद्र सरकार और राज्य सरकार के शहीद हुए पुलिसवालों की याद में एक मेमोरियल बना है। इसे नेशनल पुलिस मेमोरियल नाम दिया गया है। नेशनल पुलिस मेमोरियल 30 फीट ऊंचा ग्रेनाइट का एक खंभा है, जिसका वजन 238 टन है. इसका आधार 60 फीट लंबा है. इस खंभे पर अब तक शहीद हुए पुलिस और अर्धसैनिक बलों के कुल 34,844 जवानों के नाम लिखे हुए हैं. इसके अलावा यहां पर एक म्यूजियम भी बनाया गया है। इस म्यूजियम में पांच गैलरी हैं, जिसमें देश की पुलिसिंग का इतिहास दर्ज है। 310 ईसा पूर्व कौटिल्य के जमाने से लेकर अब तक सुरक्षा कैसे होती आई है, इसे म्यूजियम में अलग-अलग स्ट्रक्चर के जरिए समझाया गया है। म्यूजियम में सबसे पहले पुलिस की रैंकिंग बताई गई है कि पुलिस में सबसे छोटा सिपाही होता है, उसके बाद हेड कॉन्सटेबल होता है, एसआई और इन्सपेक्टर होते हुए सबसे ऊंचा पद डायरेक्टर जनरल का होता है। इसी तरह म्यूजियम में केंद्रीय पुलिस बल और राज्य के पुलिसबलों के बारे में बताया गया है। राइफल, रिवाल्वर और कार्बाइन जैसे हथियार भी म्यूजियम में रखे गए हैं. पुलिस के बैंड और पुलिसबलों पर जारी डाक टिकट भी म्यूजियम में रखे गए हैं। 1600 वर्गमीटर में बने इस म्यूजियम में पुलिस के जवानों के अलावा जानवरों के भी स्क्वॉड को दिखाया गया है, जिनमें डॉग स्क्वॉड और कैमल स्क्वॉड शामिल हैं। इसके अलावा इस म्यूजियम में पुलिसबलों की शहादत को दिखाती हुई 9 कहानियां भी हैं.। इन 9 कहानियों में  1959 में लद्दाख के हॉट स्प्रिंग में शहीद हुए 10 पुलिसवालों की कहानी,.वर्ष 2002 में अक्षरधाम हमले में शहीद हुए पुलिसवालों की कहानी, जिसे ऑपरेशन वज्र शक्ति कहा जाता है, वर्ष 2010 में दंतेवाड़ा में हुए माओवादी हमले में शहीद हुए जवान, वर्ष  2013 में उत्तराखंड में आई बाढ़ के दौरान शहीद हुए पुलिसबलों के जवान, संसद पर हुए हमले के दौरान शहीद हुए जवानों की कहानियां और उन पर फिल्म, वर्ष 1989 में शहीद हुई पहली महिला आईपीएस वंदना मलिक की कहानी वर्ष 2013 का ऑपरेशन पुत्तुर, जिसमें दो आतंकी एक मकान से पकड़े गए थे, वर्ष 2003 का नूरबाग एनकाउंटर, जिसमें जैश-ए-मुहम्मद का मुखिया गाजी बाबा मारा गया था,  डकैत वीरप्पन के एनकाउंटर की कहानी है।