पित्र दोष कारन और निवारण

पित्र दोष कारन और निवारण :- कौशल पाण्डेय 


ज्योतिष शास्त्र में अनेक योग ऐसे है कि उनसे पता चलता है कि हमारे जीवन में जन्म से पूर्व या बाद में तथा किस प्रकार कौन सा दोष लगा है जिसके कारन अशांति का अनुभव होता है। 


पितृ दोष का सिद्धांत है – करे कोई, भरे कोई। पिता के पापों का परिणाम पुत्र को भोगना ही पड़ता है,यदि उन्हें मुक्ति नहीं मिलती है तो वे प्रेत योनि में प्रवेश कर अपने ही कुल को कष्ट देना शुरू कर देते हैं। कभी-कभी देखने में आता है कि हमारा कोई भी दोष नहीं होता, हमने कोई पाप कर्म नहीं किया होता, फिर भी हमें कष्ट भोगना पड़ता है। यह पितृदोष के कारण होता है।


ऐसे कुछ कारण निम्न हो सकते हैं- पिता, ताया, चाचा, ससुर, माता, ताई, चाची और सास का अपमान करना, पूर्वजों का शास्त्रानुसार श्राद्ध व तर्पण न करना, पशु पक्षियों की व्यर्थ ही हत्या करना, सर्प वध करना। पितृदोष के निवारण हेतु उपाय विधिपूर्वक उपाय करने से व्यक्ति स्वयं, अपने पितरों व आने वाली पीढ़ी को इस दोष के प्रभावों से बचा सकता है। 


       ज्योतिष शास्त्र में सूर्य से पिता, चन्द्र से माता, गुरु से पितामह, बुध-मंगल से भाई बहन आदि के बारे में जानकारी मिलती है। जैसे कुंडली में यदि कही चंद्र राहु, चंद्र केतु, चंद्र बुध, चंद्र, शनि आदि का सम्बन्ध बनता है तो मातृ पक्ष से योग बनता है या मातृ दोष कहलाते हैं। यदि चंद्र-राहु एवं सूर्य-राहु योगों को ग्रहण योग तथा बुध-राहु को जड़त्व योग कहते हैं। जन्म कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से किसी एक भाव पर सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि का योग हो तो जातक को पितृ दोष होता है। यह योग कुंडली के जिस भाव में होता है उसके ही अशुभ फल घटित होते हैं।


प्रथम भाव में :- इसे ज्योतिष में लग्न कहते है यह शारीर का प्रतिनिधित्व करता है ,सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि आदि अशुभ योग हो तो वह व्यक्ति अशांत, गुप्त चिंता, दाम्पत्य एवं स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ होती हैं।


दूसरे भाव: इस भाव से धन, परिवार आदि के बारे में पता चलता है इस भाव में यह योग बने तो परिवार में वैमनस्य व आर्थिक उलझनें हों, 


चतुर्थ भाव :- इस भाव से माता, वाहन, जमीन में पितृ योग के कारण भूमि, मकान, माता-पिता एवं गृह सुख में कमी या कष्ट होते हैं। 


पंचम भावः- में उच्च विद्या में विघ्न व संतान सुख में कमी होने के संकेत हैं। 


सप्तम मेः- यह योग वैवाहिक सुख में कमी करता है 


नवम भावः- अगर किसी भी तरह से नवां भाव या नवें भाव का मालिक राहु या केतु से ग्रसित है तो यह सौ प्रतिशत पितृदोष के कारणों में आजाता है