बाहरी नहीं भीतरी परिवर्तन से सन्यास पूर्ण होता हैं- स्वामी राजेश्वरानंद

          पूर्वी दिल्लीः बाहरी नहीं भीतरी परिवर्तन से सन्यास पूर्ण होता हैं यह विचार स्वामी राजेश्वरानंद  महाराज ने अपने सन्यास दिवस पर शाहदरा गोरखपार्क स्थित श्रीराजमाता झंडेवाला मन्दिर में नशीनी दिवस भक्तसमुह को प्रदान किए। संस्थान के सहप्रबन्धक राम वोहरा ने बताया कि स्वामी राजेश्वरानंद  महाराज के सन्यास-गद्दीनशीन दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में प्रातः काल अनेक कुष्ठरोगियों को शॉल ओढ़ाकर चाय-नाश्ता भेँट अर्पित किया गया। सूरज बैंड बाजे द्वारा स्वामी जी के स्वागत में हरिनाम की व आरती की धार्मिक धुनें बजाई गई। श्रीबालाजी सेवा परिवार के सदस्यों ने अनिल शर्मा के नेतृत्व में श्रीसुन्दरकाण्ड का संगीतमय पाठ प्रस्तुत किया। राधाकृष्ण प्रेममयी भजनीक आनन्द जी आनन्द, राधा रानी के साथ अंजू जैन ने भजनों की अमृत वर्षा की झड़ी लगा दी।"तेरी यमुना दा मीठा मीठा पानी"-"सतगुरु मेरे कलम हथ तेरे" भजनों पर भक्तसमुह भावविभोर जोकर झूमता रहा।



इस अवसर पर आशीर्वचन प्रदान करते हुए स्वामी राजेश्वरानंद महाराज ने कहा कि "सन्यास बाहरी रूप से वस्त्र परिवर्तन, वेष धारण करने से या छाप तिलक लगाने से नहीं बल्कि भीतरी रूप से परिवर्तन की खुशबू का उदाहरण प्रस्तुत करता है। जिस व्यक्ति के जीवन में अपने कार्य समाप्त हो जाते हैं व जिसके खाना खाने के पीछे भी मात्र परोपकार ही उद्देश्य रह जाता हैं वही सन्यासी। दुःख का विषय है कि मनुष्य सेवादार बनने का प्रयास नहीं करता बल्कि खुद को स्वामी घोषित करने की इच्छा रखता हैं इसी से सन्यासी बनकर भी सच्चे अर्थों में सन्यास से वंचित रह जाता हैं।



कंपकपाती ठंड के बावजूद भक्तो में जोश की कमी नहीं थी। कार्यक्रम के आखिर में हनुमान चालीसा का सामुहिक पाठ व गुरुदेव की आरती उतारी गई। विभिन्न क्षेत्रों से आये हुए भक्तो के लिए भण्डारे की व्यवस्था की गई थी।