मुस्लिम वोट पर टिका हैं सीलमपुर सीट के जीत का फैसला

इस बार कैसा रहेगा मुकाबला: सीलमपुर सीट कांग्रेस की गढ़ रही है, ऐसे में यहां मुकाबला त्रिकोणिय रहेगा। बीजेपी को इस क्षेत्र में जीत के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना होगा। वहीं, पिछले विधानसभा चुनाव में आप पहले, बीजेपी दूसरे और कांग्रेस तीसरे नम्बर पर रही थी। इस बार सीलमपुर विधानसभा में कांग्रेस के मतीन अहमद, आप के अब्दुल रहमान और बीजेपी के कौशल मिश्रा मैदान में उतरे हैं अब देखना यह होगा कि सीलमपुर विधानसभा की जीत का ताज किसके सर पर होगा|
तंग गलियों में दिन भर शोर-शराबे का आलम, गलियों में चल रहे प्रदूषण फैलाने वाले छोटे-बड़े कारखाने, टूटी हुई सड़कें, सड़कों पर कूड़े का अंबार, बिजली के खंभे पर तारों का मक्कड़जाल और जाम में फंसे हुए सैकड़ों लोग। कुछ ऐसी ही तस्वीर जेहन में हमारे सामने आती है,  यह क्षेत्र है नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली सीलमपुर विधानसभा| इस सीट पर 60 प्रतिशत मुस्लिम आबादी और लगभग 40 प्रतिशत हिन्दू आबादी है।



इस सीट का 1993 से लेकर आज तक इतिहास रहा है कि बीजेपी एक बार भी जीत का खाता नहीं खोल पाई है। ऐसे में यहां के नतीजे का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह मुस्लिम वोट ही तय करेगा।इस बार विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने काउंसलर अब्दुल रहमान, बीजेपी ने कौशल मिश्रा और कांग्रेस ने यहां से पांच बार के विधायक रहे चौधरी मतीन पर दाव लगाया है। मुस्लिम वोटर अभी तय नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें आप के लहर में जाना है या अपने पुराने चौधरी मतीन के साथ जाना है। वहीं, बीजेपी की नजर मुस्लिम वोट के बंटवारे और हिन्दू वोटर्स को एकजुट करने में है। 2015 की विधानसभा चुनाव में पहली बार यहां सत्ता बदली और बीजेपी के संजय जैन को 27887 वोटों से हरा कर आम आदमी पार्टी के हाजी इशराक खान विधायक बने। इससे पहले यहां चौधरी मतीन 1993 से लेकर 2013 तक लगातार जीत दर्ज करते रहे हैं। इस दौरान वह एक बार जनता दल से, एक बार निर्दलिय और दो बार कांग्रेस से चुनाव जीते। इस बार चौधरी मतीन के लिए भी वापसी एक चुनौती की तरह है। जिन सीटों पर आम आदमी पार्टी को खतरा है, उनमें से एक सीलमपुर की सीट भी है। क्योंकि हाजी इशराक खान का इस बार टीकट कटने से आम आदमी पार्टी के काफी कार्यकर्ता कांग्रेस के खेमे में चले गए हैं। वहीं, हाजी इशराक भी अब्दुल रहमान के लिए वोट नहीं मांग रहे हैं। चौधरी मतीन अगर वोट प्रतिशत बढ़ा पाए तो आप के पार्षद से विधानसभा के प्रत्याशी बने अब्दुल रहमान के लिए यह सीट बचा पाना चुनौती होगी। यहां के लोगों का कहना है कि इस सीट पर काम से ज्यादा दुआ सलाम का असर रहता है।